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________________ १३०] भगवान पार्श्वनाथ । ८. प्रकीर्णक-प्रना। ९. अभियोग्य-वह देव जो अपनेको सवारी रूप घोडा आदि बना देते है। १०. और किल्विपिक-सेवादल ।। धरणेन्द्र नागकुमार देवोका इन्द्र था और शेष जो उनके सामानिक आदि थे वह ऊपर बतलाये हैं । इनके विषयमें और 'विशेष वर्णन श्री मर्थप्रकाशिकानीमें भवनवासी देवोंके साथ 'निम्नप्रकार है - , 'भवननिमें बसें हैं ताते इनकू भवनवासी कहिये है । भवनवासीनिनें असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, दीपकुमार, दिक्कुमार ऐसे दश विशेष सज्ञा नाम कर्मकरि कीनी जानना, बहुरिकोऊ श्वेतावरादिक कहैं जो देवनिकरि 'अभ्यति' कहिए युद्ध करै प्रहार करे ते असुर है ऐस कहें सो नहीं। ए कहना तो देवोंकों भवर्णवाद है, उसमे मिथ्यात्वका बघ होय है। ते सौधर्मादिकनिके देव महा प्रभावान है। इनकै उपरि हीन देव मनकरिके इ प्रतिकूल पणा नहीं विचारे हैं। जो एता विशेष है। जो चमरेन्द्र अर वैरोचन ए इन्द्र अपनी ऐश्वर्य संपदा करि परिणाममें ऐसा मद करै हैं जो हमार सौधर्म ईशान इन्द्रसौं कौनमी सपदा घट है. हम भी उनके तुल्य ही है ऐमी परिणामनिमें ईर्षा है मो अभिमानकी अधिकता ते ऐमी ईर्पा करे ही हैं । बहुरि सौधर्मादिक देवनि विशिष्ट शुभ कर्मका उदयकरि विभव है सो अरहंत धना तथा भोगानुभवन १-नवार्यसूत्रम् अ० . मत्र ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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