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धरणेन्द्र पद्मावती कृतज्ञता-ज्ञापन । [१२९ नवानां कुमाराणां भवनानि भवंति ॥ १० ॥ तद्यथा अस्माजम्बूद्वीपात्तियर्गपाग सख्येयान द्वीपसमुद्रानतीत्य धरणस्य नागराजस्य चतुश्चत्वारिंशत् भवन शतसहस्राणि, षष्ठि; सामानिक सहस्राणि, त्रयस्त्रिंशत्त्रायस्त्रिशाः, तिन. परिपदः, सप्तानीकान् चत्वारो लोकपाला , षडग्रमहिष्य., 'पडात्मरक्षसहस्राण्याख्यायंते ।. .तान्येतानि नागकुमाराणां चतुरशीति भवनशतसहस्राणि । इत्यादि ।' :
खटथ्वीपर धरणेन्द्र अथवा नागराजके चवालीसलाख भवन मौजूद हैं। यह खरष्टथ्वी इस जम्बूद्वीपके असंख्यात् द्वीपसमुद्रोको व्यतीत कर जानेपर मिलती है । इनके छ हजार सामानिक देव है, तेतीस त्रायस्त्रिंशत् देव हैं, तीन परिषद (सभायें) हैं, सात सेनायें हैं, छै अग्रमहिषी (पानी) हैं और छैहजार आत्मरक्षक है । वास्तवमें जैनशास्त्रोमें प्रत्येक प्रकारके देवोके लिए दस दर्ने नियत किये हुये मिलते हैं: यथा - ।
१. इन्द्र-यह रानाकी भांति मुख्य और शासक होता है।
२. सामानिक-यह भी बलवान और शक्तिसम्पन्न होते है, परन्तु इन्द्र के समान नहीं । इन्हें पिता, गुरु आदि समझना चाहिये।
३. त्रायस्त्रिंशत्-यह मत्री, पुरोहित आदि कुल ३३ है । इसलिये इस नामसे उल्लेखमे आते है।
४. पारिषद-ममाके सदस्यगण अथवा दरबारी लोग । ५. आत्मरक्षक-यह शरीररक्षक होते हैं । ६. लोकपाल-प्रजाके सरक्षक, जैसे पुलिस ।
७. अनीक-फौज । १-जवार्तिक सटीक पृष्ठ १५४