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[१३] पाध्याय एम० ए०ने ठीक कहा है कि पाश्र्वनाथजी जैनधर्मके आदि प्रचारक नहीं थे, परन्तु मका प्रथम प्रचार ऋषभदेवनीने किया सारसकी पुष्टि के प्रमाणोका अभाव नहीं है।'' हठात् डॉ० हर्मन जोत्रीको भी यह प्रगट करना पड़ा है कि:
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अर्थात-'पार्श्वको जैनधर्मका प्रणेता या संस्थापक सिद्ध करनेके लिए कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। जन मान्यता स्पष्ट रीतिसे प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवको इसका सस्थापक बतलाती है। जैनियोंकी इस मान्यतामें कुछ ऐतिहासिक सत्य हो सक्ता है।' इस प्रकार पाश्चात्य विद्वानों का पूर्वोक्त मत उन्हींके वचनोसे बाधित है तौभी हम स्वतंत्र रीतिसे जैनधर्मकी प्राचीनतापर प्रकाश डालेंगे; जिससे कि विद्वत्समानसे यह भ्रम दूर होजाय कि जैनधर्मके संस्थापक श्री पार्श्वनाथजी अथवा महावीर थे। जैनधर्मकी विशेष प्राचीनता स्वय उसके कतिपय सिद्धातोंसे
ही प्रगट है। उसमें जो वनस्पति, जैनधर्मकी प्राचीनता पृथ्वी, जल, अग्नि आदि पदार्थो में उसके सिद्धान्तोंसे जीवित शक्ति का होना बतलाया गया प्रकट है। है, वह उसकी बहु प्राचीनताका द्योतक
है । क्योकि Enthology विद्याका मत इस सिद्धांतके विषयमे है कि वह सर्व प्राचीन मनुष्योंका मल
१-पूर्व पृ० १८ ।
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