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________________ दिया ११८] भगवान पार्श्वनाथ । फिर इन्द्रने बालक भगवानको राजा-रानीके __ ओर उनकी वडी विनयसे पूजा की। इसपर सब देवोंने मिलकर सबके मनोको मोहनेवाला अद्भुत नाट्य रचा जिसे देखकर राजा और रानी एवं सब ही उपस्थित भव्यगण बडे ही आनंदमन हुये। इसके बाद इन्द्र और सब देवलोग अपनेर स्थानोंको चले गये। राजा विश्वसेनने भी पुत्रका जन्मोत्सव बड़े ही ठाठवाटसे मनाया । सारी बनारस नगरी एक छोरसे दूसरे छोरतक जगमगा उठी और चहुंओर आनंद छा गया । वढीगण मुक्त कर दिये गय याचकोको दान दिया गया और प्रजाका मान किया गया । और त्रिलोकवदनीय तीर्थंकर भगवानको अपनी गोदमें धारण करक राजा-रानी अपने भाग्यकी सराहना करने लगे। पूज्य भगवान माता पिता होनेसे बढ़कर और कौनसा पद संसारमें श्रेष्ट है ? वहा सर्वोत्कृष्ट है। अतएव हम भी यहांपर जन्मोत्सव प्रकरणमें भगवान और उनके मातापिताके निकट नतमस्तक हो लेते है। नयतीति एव पार्श्व यो भव्यान तोहि सार्थक । अस्य चक्रुः सुरा पार्श्वनामपित्रो प्रसाक्षिक ॥ १०१॥ सर्ग २३ इति सकलकार्तिः।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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