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[६] हित्यमें केवल यही एक उल्लेख नहीं है, बल्कि और भी कई उल्लेख हैं जिनसे भगवान् पार्श्वनाथके अस्तित्व और उनके शिष्यों आदिका परिचय मिलता है । अतएव इसतरह भी हम जनमान्यताको ठीक पाते है। ऐसे ही उत्कट प्रमाणोको देखकर आधुनिक विद्वानोंने भी
भगवान् पार्श्वनाथजीको एक ऐतिहासिक आधुनिक विद्वान भीश्री महापुरुष माना है । वह कोई काल्पनिक पार्श्वको ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं थे, यह वात प्राय सब ही पुरुष मानते है। विद्वान मानने लगे हैं । यहांपर उनमें से
___ कुछका अभिमत उद्धृत कर देना अनुचित न होगा। पहले ही प्रसिद्ध भारतीय विद्वान् डा० टी० के० लड्डू बी० ए०, पी० एच० डी०, एम० आर० ए० एस० आदिको ले लीजिए। आप अपने बनारसवाले व्याख्यानमें कहते है:-" यह प्रायः निश्चित है कि जैनधर्म बौद्धमतसे प्राचीन है और इसके संस्थापक चाहे पार्श्वनाथ हो और चाहे अन्य कोई तीर्थंकर जो महावीरजीसे पहले हुए हो।" प्रख्यात् दार्शनिक विद्वान् साहित्याचार्य ला० मन्नोमल एम० ए० जज एक लेखमें
१-भगवान् महावीर और म० वुद्धका परिशिष्ट । बौद्ध शास्त्रोंमें जैनोंका उन्न निगन्यरूपमें हुआ है। स्वयं जैनग्रयोंमें भी जनमुनि 'निग' के नामले परिचित हुये है । (मूलाचार पृ. १३) 'निगय का संस्कृतस्प 'निर्घन्य है, जिसका भाव निर (=नहीं)-प्रथ (=ग्रथि=
गाठ) अर्थात् प्रथियोंसे रहित है । नैकोवी और बुल्हरने निगयोका भाव • जैनोले प्रमाणित किया है । (देखों जैनसूत्र S B. E की भूमिका ।
*२-जैन लॉ० पृ. २२३ ।