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[५] जीवन घटनायें किस तरह निर्मित करा सक्ते ? उस समय उनको गुजरे इतना भारी जमाना भी नहीं हुआ था कि लोग अपनी कामनाको काममें लेआते ! बल्कि बात तो यथार्थमें यही है कि ईसासे पूर्व आठवीं शताब्दिमें भगवान् पार्श्वनाथनी अवश्य हुये थे; जैस्टे कि जैन ग्रंथोंसे प्रमाणित है। मथुराके कंकालीटीलेसे भी ईसवी पहली शताव्दिकी बनी हुई भगवान पार्श्वनाथकी नग्न मूर्तियां उपलब्ध हुई हैं और वहांपर एक ईटोंका बना हुआ बहुप्राचीन जैन स्तूप भी था; जिसका समय बुल्हर और विन्सेन्ट स्मिथ प्रभृति विद्वान् भगवान् पार्श्वनाथका समवर्ती बतलाते हैं। अब यदि २४३ तीर्थकर भगवान् महावीरजी (पांचवी शताब्दि ईसासे पूर्व) के पहले भगवान पार्श्वनाथनी नहीं हुवे तो फिर उस समयका जैनस्तूप कहांसे आगया ? अतः मानना पड़ता है कि भगवान पार्श्वनाथनी अवश्य ही एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे !
उधर जैनेतर साहित्यपर दृष्टि डालनेसे भी हमें बौड साहित्यसे भगवान महावीरके पहिले एक जैन तीर्थकरका होना प्रमाणित होता है । मज्झिमनिकायमें लिखा है कि निगन्ध पुत्र सञ्चकने म० बुद्धसे वाद किया था। अब यदि जैनधर्म भगवाद महावीरनीसे पहलेका न होता, जो म० बुद्धके समकालीन थे, तो फिर एक जैनका लड़का (निगन्थ पुत्त ) म० बुद्धका समकालीन नहीं होसक्ता था। इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि भगवान महावीरजीके पहले भी कोई महापुरुष जैनधर्मका प्रणेता होगया था। बौद्धसा
१-जैनस्तूप एण्ड अदर एण्टीक्वटीज आफ मथुरा पृ० १३ । २-भगवान महावीर और म० बुद्र पृ० १९९ ।