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________________ भगवान महावीर कई यूनानी जैन और बौद्ध ग्रन्थों से सावित कर दिया है । यद्यपि वसु महोदय का यह मत अभी तक सर्वमान्य नहीं हुआ है, तथापि यदि उनका यह अनुसन्धान ठीक निकला तो फिर जेकोबी साहव की ये तीनों उपपत्तियां एकदम जहां तक चन्द्रगुप्त का काल ई० पू० ३२२ माननीय है, वहाँ तक कोवी साहब की यह तीसरी उपपत्ति अवश्य कुछ मादारखती है। पर इसमें भी कई प्रश्न उत्त्पन्न होते हैं। यदि हम हेमचन्द्राचार्य को प्रमाण मानें तो यह निश्चय है कि, उनके समय तक महावीर निर्वाण संवत् वरावर वास्तविक रूप में चला आ रहा होगा। फिर आगे जाकर किस समय मे, किस उद्देश्य से और किसने इस सवत् मे ५० वर्ष और मिला दिये इसका निर्णय करना होगा । ५० वर्ष मिलाने की किसी को क्या आवश्यकता पड़ी। यह प्रश्न वहुत ही विचारणीय है। इसको हल करने का कोई साधन हमारे पास नहीं है। और जहां तक ऐसा साधन नहीं है वहां तक ऐसा कहना भी व्यर्थ है। उपरोक्त विवेचन का मतलव इतना ही है कि महावीर का काल वहुत सोचने पर भी हसारे खयाल से वही ठहरता है जो उनका प्रचलित संवत् कहता है। डा० हर्मन जेकोबी की उपपत्तियां बहुत महत्त्व पूर्ण हैं । पर उनमें शंका के ऐसे ऐसे स्थल हैं कि, उन पर एकाएक विश्वास नहीं किया जा सकता। कुछ वर्षों पूर्व पाटलिपुत्र के सम्पादक और हिन्दी के लब्ध प्रतिष्ठित लेखक श्रीयुत् काशीप्रसाद जायसवाल ने भी । महावीर निर्वाण सम्वत् पर एक महत्वपूर्ण निवन्ध लिखा था। उस निबन्ध मे उन्होने महावीर निर्वाण संवत् मे १८ वर्ष की भूल
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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