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भगवान महावीर
मतवालो ने ब्राह्मणों को नीचा दिखाने के लिए ही इन मब प्राचीन नामों की कल्पना की है।
कुछ भी हो अभी तक हमारे पास कोई ऐसे साधन नहीं हैं कि, जिनके जरिये हम पार्श्वनाथ से पहले के तीर्थकरों का ऐतिहासिक अनुसंधान कर सकें। इसलिये ऐतिहासिक दृष्टि से हमे जैनधर्म के मूल संस्थापक पार्श्वनाथ को ही मान कर सन्तोष करना पडेगा। जैनधर्म की उन्नति और उसका तत्कालीन
समाज पर प्रभाव
एक विद्वान् का कथन है कि युद्ध, महामारी आदि वाह्य आपत्तियों से समाज के अन्दर क्रान्ति नहीं हो सकती। समाज में क्रान्ति उसी समय होती है, जब उसके अन्तर्तत्व मे कोई खास विशृखला उत्पन्न होती है । समाज के अन्तर्जगत् में जव मूलतत्वो के नष्टभ्रष्ट होने से खल बली मचती है, तभी क्रान्ति का बाह्य उद्गम होता है, क्रान्ति : उसी ज्वालामुखी पहाड़ की तरह समाज मे धधकती है, जिसके अतर्गत बहुत समय पूर्व से अन्दर ही अन्दर भभकने का मसाला तैयार होता रहता है।
उपरोक्त विद्वान् का यह कथन समाज-शास्त्र के पूर्ण अध्ययन का परिणाम है । समाज-शास्त्र की इस निर्मल कसोटी पर जब हम तत्कालीनासमाज को जांचते हैं तब हमे मालूम होता है कि, उस समय के मूलतत्त्वों में बहुत विश्रृंखला पैदा हो गई थी। समाज के अतर्गत उस समय बहुत हलचल उत्पन्न हो । गई थी। इस हलचल का ऐतिहासिक विवेचन हम पहले कर