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चौथा अध्याय )
उस समय के दूसरे सम्प्रदाय
वौद्ध और आजीविक सम्प्रदाय का वर्णन तो हम कर
चुके, अब यहां पर उन शेप छोटे छोटे मतों
“का विवेचन करना चाहते हैं जो भगवान महावीर के समय में इस देश के अंतर्गत प्रचलित थे। जैन शास्त्रो में इन मतों का विरोध किया गया है।
सूत्र कृतांग २,१,३५५ र २१ में दो जड़वादी मतोका नल्लेख किया गया है। पहले सूत्र मे आत्मा को एक और अभिन्न बनाने वाले एक मत का वर्णन है। और दूसरे सूत्र मे "पचभूत" कोही नित्य और सृष्टि का मूल तत्व मानने वाले एक दूसरे मत का वर्णन है। सूत्र कृतांग मे जाहिर होता है कि ये दोनों ही मत जीवित प्राणी को हिंसा मे पाप नहीं समझते थे।
बौद्धों के "सामन फल सूत्र" मे " पूरणकस्सप" और "अजितकेश कम्पलि" के मतों का उल्लेख किया गया है। इन दोनों मतो के तत्वों में और सूत्र कृतांग में वर्णन किये हुए उप