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भगवान महावीर . कई उपाय किये, प्रमोद भवन वनाये । सुन्दरीयशोधरासे विवाह किया। पर कुमार सिद्धार्थ का हृदय किसी भी वस्तु पर अधिक समय के लिए आसक्त न हुआ । समाज का करुण कन्दन उनके हृदय पर दारण चोट पहुँचा रहा था । मनुष्य जाति के दुःख से उनका हृदय दिनगत रोया करता था। वैराग्य को अग्नि उनके हदय में दिन पर दिन अधिकाधिक प्रज्वलित होती जा रही थी। अन्त मे एक दिन अवसर पाकर गत के समय अपने पिता, माता (गोतमी) पत्नी, पुत्र आदि सव परिजनों को सोता हुआ छोड कर बुद्धदेव घर से निकल पड़े। वे मन्यासी हए । उन्होंने बहुत शीत्र समाज के अत्याचारों के विरुद्ध जोर की आवाज उठाई । महावीर की आवाज ने समाज को पहले ही सजग कर दिया था। बुद्ध की आवाज ने उसका रहा महा भ्रम भी मिटा दिया, फिर क्या था ? सारे समाज के अन्दर एक नव जीवन का संचार हो आया। मोह का पग्दा फट गया, मनुष्यत्व का विकास हुआ। जो लोग महावीर के मरडे के नीचे जाने से हिचकते थे। वे भी खुशी के साथ बुद्ध के मण्ड के नीचे एकत्र होने लगे। इसका कारण यह था कि जैन धर्म एक तो बिल्कुल नवीन नथा, वह पहले ही से चला पा रहा था, और मनुष्य प्रकृति कुछ ऐसी है कि वह नवीनता को जितना अधिक पसन्द करती है। उतनी प्राचीनता को नहीं। दूसरा कारण यह था कि भगवान महावीर ने श्रावक के नियम कुछ ऐसे कठिन रख दिये थे, कि सर्व साधारण सुगमता के साथ उनका पालन नहीं कर सकते थे। इधर बुद्ध-धर्म पूर्ण उदारता के साथ सर्व साधारण को अपने झण्डे