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________________ ४३ भगवान् महावीर इसके सिवाय यज्ञ करने में बहुत सा धन भी खर्च होता था, जिस यज्ञ मे ब्राह्मणों को दक्षिणाएँ न दी जाती थीं वह यज्ञ अपूणे समझा जाता था, बड़ी बड़ी दक्षिणाएँ ब्राह्मणों को दी जाती थीं। कुछ यज्ञ तो ऐसे होते थे जिनमें साल साल भर लग जाता था और हजारों ब्राह्मणों की जरूरत पड़ती थी, अतएव जो लोगसम्पतिशील होते थे, वे तो यज्ञादि कमों के द्वारा अपने पापों को नष्ट करते थे, पर निर्धन लोगों के लिए यह मार्ग सुगम न था। उन्हें किसी भी प्रकार ब्राह्मण लोग मुक्ति का परवाना न देते थे। इसलिए साधारण स्थिति के लोगो ने आत्मा की उन्नति के लिए दूसरे उपाय ढूँढना गरम्भ किये। इन उपायों में से एक उपाय "हठयोग" भी था, उस समय लोगों को यह विश्वास हो गया था कि कठिन से कठिन तपस्या करने पर ऋद्धि सिद्धि प्राप्त हो सकती है। आत्मिक उन्नति प्राप्त करने और प्रकृति पर विजय पाने के निमित्त लोग अनेक प्रकार की तपस्याओं के द्वारा अपनी काया को कष्ट देते थे, पञ्चाग्नि तपना, एक पैर से खड़े होकर एक हाथ उठा कर तपस्या करना, महीनो तक कठिन से कठिन उपवास करना, आदि इसी प्रकार की कई अन्य तपस्याएँ भी इन्द्रियो पर विजय प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझी जाती थीं। इन तपस्याओं के करते करते लोगों का अभ्यास इतना बढ़ गया था कि उन्हे कठिन से कठिन यन्त्रणाभुगतने में भी अधिक कष्ट न होता था। जनता के अन्दर यह विश्वास जोरो के साथ फैल गया था कि यदि यह तपस्या पूर्ण रूपेण हो जाय तो आदमी विश्व का सम्राट् हो सकता है । यह भ्रम इतनी सत्यता
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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