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भगवान् महावीर
४६२ बली मात्र चारित्र उपरज भार मुके है, परन्तु जैन-धर्म एत्रणे ना समन्वय अने सहयोगथीज आत्मा परमात्मा थाय छे एम स्पष्ट जणावे छ।
(३) रिषभदेवजी 'आदि जिन' "आदिश्वर" भगवान् ना नामे पण ओलखाय छै ऋग्यवेद नांसूकती मां तेमनो 'अर्हत' तरीके उल्लेख थएलो छै जैनो तेमने प्रथम तीर्थकर माने है. (४) बीजा तीर्थकरो बधा क्षत्रियोज हता,
(२९) श्रीयुत् सी. वी. राजवाड़े, एम. ए. वी. एस. सी प्रोफेसर ऑफ पाली, बरोडा कालेज का एक लेख "जैन-धर्म नुं अध्ययन" जैन साहित्य संशोधक पूना भाग १ अङ्क १ में छपा है उसमे से कुछ वाक्य उद्धृत।
(१) प्रोफेसर वेबर वुत्हर जेकोवी हारनल भांडारकर ल्युयन राइस गॅरीनोट वगैरा विद्वानोए जैन धर्मना संबंधमां अतःकरण पूर्वक अथाग परिश्रम लेई अनेक महत्वनीशोत्रो प्रगट करेली छै।
(२) जैन-धर्म पूर्वना धर्मों मां पोतानो स्वतंत्र. स्थान प्राप्त करतो जाय छे,
(३) जैन-धर्म ते मात्र जैनो नेज नहीं परंतु तेमना सिवाय प्राश्चात्य संशोधनना प्रत्येक विद्यार्थी अने खास करीने जो पौर्वात्य देशो ना धर्मों ना तुलनात्मक अभ्यास मां रस लेता होय तेमने तल्लीन करी नाके एवो रसिक विषय छै.
डाक्टर F. OTTO SGHRADER, P.H.D. का