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________________ ४६१ भगवान् महावार और त्याग धर्म की योग्य प्रशंसा की और पीछे, से पत्र द्वारा अपना संतोष जाहिर किया इसमें बहुत तारीफ करने के साथ समयाभाव से अधुरा विषय छोड़ना पड़ा इसका अफसोस जाहिर किया। जैन वर्तमान १४ जून १९१३ ई० से श्रीयुत् डाक्टर जोली प्रोफेसर संस्कृत वृजवर्ग यूनिवर्सिटी जर्मनी। जैन धर्म को उपयोगिता को सार्व रूप से पश्चिमीय विद्वानों को स्वीकार करना चाहिये। जैन मित्र १९ जुलाई १९२३ ई. से (२७) इन्डियन रिव्यू के अक्टोवर सन् १९२० ई० के अङ्क में मद्रास प्रेसीडेन्सी कॉलेज के फिलोसोफी के प्रोफेसर मि० ए. चक्रवर्ती एम. ए. एल. टी. लिखित "जैन फिलोसोफी" नाम के अर्टिकल का गुजराती अनुवाद महावीर पत्र के पौष शुका १ संवत् २४४८ वोर संवन् के अंक में छपा है उस में से कुछ वाक्य उद्धृत है (१) धर्म अने समाज की सुधारणा में जैन-धर्म बहु अगत्य नो माग मन्त्री शके छः कारण आ कार्य माटे ते उत्कृष्ट रोते लायक छ। (२) आचार पालन मां जैन-धर्म घणे आगल वधे छै अने बीजा प्रचलित धर्मों ने तो सम्पूर्णतानु भान करावे छै कोई धर्म मात्र श्रद्धा (भक्ती) पर तो कोई ज्ञान उपर अने कोई
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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