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भगवान महावीर बौद्ध धर्म की शाखा नहीं है। महावीर स्वामी जैन धर्म के स्थापक नहीं है। उन्होंने केवल प्राचीन धर्म का प्रचार किया है।
(२) जैन दर्शन में जीव तत्र की जैसी विस्तृत आलोचना है वैसी और किसी भी दर्शन में नहीं है।
(२३) हिन्दी भाषा के सर्वश्रेष्ट लेखक और धुरवर विद्वान् प० श्रीमहावीरप्रमादजी द्विवेदी ने प्राचीन जैन लेख-सग्रह की समालोचना "सरस्वती" में की है। उसमें से कुछ वाक्य ये हैं:
(१) प्राचीन ढर के हिन्दू धर्मावलम्बी बड़े बडे शास्त्री तक अब भी नहीं जानते कि जैनियोका त्याद्वाद किस चिडिया का नाम है। धन्यवाद है जर्मनी और फ्रांस, इगलैण्ड के कुछ विद्यानुरागी विशेपनों को जिनकी कृपा से इस धर्म के अनुयाइयों के कीर्ति कलाप की खोज और भारतवर्प के साक्षर जैनो का ध्यान आकृष्ट हुआ । यदि ये विदेशी विद्वान् जैनो के धर्म अन्यों आदि की आलोचना न करते यदि ये उनके कुछ ग्रन्थो का प्रकाशन न करते और यदि ये जैनो के प्राचीन लेखो की महत्ता न प्रकट करते तो हम लोग शायद आज भी पूर्ववत ही अन्नान के अन्धकार में ही डूबे रहते । ___ भारतवर्ष में जैन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसके अनुयाई साधुओं (मुनियों) और प्राचार्यों में से अनेक जनो ने धर्मोपदेश के साथ ही साथ अपना समस्त जीवन ग्रन्य-रचना और अन्य संग्रह मे खर्च कर दिया है।
(३)वीकानेर, जैसलमेर और पाटन आदि स्थानो