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भगवान् महावीर
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[१८] श्रीयुत् तुकाराम कृष्ण शर्मा लट्टु वी० ए० पी०एच० डी०
एम० आर० ए० एस० एम० ए० एस० वी० एम० जी० श्रो० एस० प्रोफेसर संस्कृत शिलालेखादि के विषय के अव्यापक कीन्स कालेज बनारस ।
स्याद्वाद महाविद्यालय काशी के दशम वार्षिकोत्सव पर दिये हुए व्याख्यान में से कुछ वाक्य उद्धृत ।
( १ ) सब से पहले इस भारतवर्ष में "रिषभदेवजी" नाम के महर्षि उत्पन्न हुए । वे दयावान भद्रपरिणानी, पहिले तीर्थकर हुए जिन्होंने मिथ्यात्व अवस्था को देख कर "सम्यदर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्वारित्र रूपी मोक्ष शाख का उपदेश किया । बस यही जिन दर्शन इस कल्प में हुआ । इसके पश्चात् श्रजीतनाथ से लेकर महावीर तक तेईस तीर्थकर अपने अपने समय मे अज्ञानी जीवो का मोह अंधकार नाश करते थे ।
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साहित्य रत्न डाक्टर रवीन्द्रनाथ टागोर कहते हैं कि महावीर ने डीडींग नाद से हिन्द में ऐसा सन्देश फैलाया कि:- धर्म यह मात्र सामाजिक रूढ़ि नहीं है परन्तु वास्तविक सत्य है, मोक्ष यह बाहरी क्रिया कांड पालने से नही मिलता, परन्तु सत्यधर्म स्वरूप में आश्रय लेने से ही मिलता है । और धर्म और मनुष्य में कोई स्थायी भेद नहीं रह सकता। कहते आश्चर्य पैदा होता है कि इस शिक्षा ने समाज के हृदय में जड़ करके बैठी हुई भावनारूपी विघ्नों को वरा से भेद दिये और देश को वशी