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भगवान् महावीर
(३) हिन्दुओ! अपने इन बुजुर्गों की इज्जत करना सीखो ...""तुम इनके गुणों को देखो, उनकी पवित्र सूरतों का दर्शन फरो, उनके भावों को प्यार की निगाह ने देखो, वह धर्म कर्म की झलकती हुई चमकती मूर्तियाँ है.""उनका दिल विशाल था, वह एक वेपायाकनार समन्दर था जिसमें मनुष्य प्रेम को लहरे जोर शोर से उठती रहती थी और सिर्फ मनुष्य ही क्यो उन्होंने संसार के प्राणीमात्र की भलाई के लिये सब का त्याग किया।जानदारो का खून बहना रोकने के लिये अपनी ज़िन्दगी का खून कर दिया । यह अहिंसा की परम ज्योतिवाली मूर्तियाँ हैं।
ये दुनियाँ के जबरदस्त रिफार्मर, जवरदस्त उपकारी और चंड ऊँचे दर्जे के उपदेशक और प्रचारक गुजरे हैं। यह हमारी कौमी तवारीख (इतिहास) के कीमती [बहुमूल्य रत्न हैं। तुम कहाँ और किन में धर्मात्मा प्राणियो की खोज करते हो इन्ही को देखो। इनसे बेहतर उत्तम साहवे कमाल तुमको और कहां मिलेंगे। इनमें त्याग था, इनमें वैराग्य था, इनमे धर्म का कमाल था, यह इन्सानी कमजोरियों से बहुत ही ऊँचे थे। इनका खिताब "जिन" है। जिन्होंने मोहमाया को और मन और काया को जीत लिया था। यह तीर्थकर हैं। इनमें बनावट नहीं थी, दिखावट नहीं थी, जो बात थी साफ साफ थी। ये वह लासानी [अनौपम] शखसीयतें हो गुजरी हैं। जिनको जिसमानी कम जोरियों, व ऐवों के छिपाने के लिये किसी जाहिरी पोशाक की जरूरत महसूस नहीं हुई । क्योंकि उन्होंने तप करके, जप करके, योग का साधन करके, अपने आप को मुकम्मल और पूर्ण बना लिया था....."""इत्यादि इत्यादि.......