________________
भगवान् महावीर
Liste
૪૪૬
[२]
श्रीयुत महामहोपाध्याय सत्य सम्प्रदायाचार्य्य सर्वान्तर पं० स्वामी राममिश्रजी शास्त्री भूतपूर्व प्रोफेसर संस्कृत कालेज
चनारस |
आपने मिती पौप शुक्ला १ सम्वत् १९६२ को काशीनगर में व्याख्यान दिया उसमें के कुछ वाक्य उद्धृत करते हैं ।
( १ ) ज्ञान, वैराग्य, शान्ति, क्षन्ति, श्रदम्भ, अनीय, अक्रोध, आमात्सर्य, अलोलुपता, शम, दम, अहिसा सामदृष्टि इत्यादि गुणों में एक एक गुण ऐसा है कि जहाँ वह पाया जाय वहां पर बुद्धिमान् पूजा करने लगते हैं । तब तो जहां ये (अर्थात् जैनों मे) पूर्वोक्त सब गुण निरतिशय सीम होकर विराजमान हैं उनकी पूजा न करना अथवा ऐसे गुण पूजकों की पूजा में वाघा डालना क्या इन्सानियत का कार्य है ।
( २ ) मैं आपको कहां तक कहूँ, बड़े बड़े नामी आचायों ने अपने ग्रन्थो में जो जैन मत खण्डन किया है वह ऐसा किया है जिसे देखसुन कर हँसी आती है।
( ३ ) स्याद्वाद का यह ( जैनधर्म ) श्रभेद्य किला है उसके अन्दर वादी प्रतिवादियों के मायामय गोले नहीं प्रवेश कर सकते ।
( ४ ) सज्जनों एक दिन वह था कि जैन सम्प्रदाय के आचायोंकी हूँकार से दसों दिशाएं गूंज उठती थीं ।
(५) जैन मत तब से प्रचलित हुआ है जब से ससार या सृष्टि का आरम्भ हुआ ।