________________
४४५
भगवान महावीर
पूर्णता को पहुँच गया है, हम लोग जातीयत्व और मनुष्यत्व की भावनाओं को भूलकर अपनी जाति का तीन तेरह कर चुके हैं। अब यदि हमें अपनी मृत-प्राय जाति को पुन. सजीवित करना है-यदि हमें जैनजाति के इस शीघ्रगामी हास को रोकना है तो हमारा कर्तव्य है कि पारस्परिक द्वेष की भावनाओ को भूलकर, उधार धर्म को तिलांजलि दे नगद धर्म को ग्रहण करें. और भगवान महावीर के सच्चे अनुयायी कहलाने का गौरव प्राप्त करें।
जैनधर्म पर अजैन विद्वानों की सम्मतियां
[ १ ] श्रीयुत डाक्टर सतीशचन्द्र विद्यामूषण एम. ए. पी. एच. डी एफ. आई. आर. एस. सिद्धान्त महोदधि प्रिंसपिल सस्कृत कालिज कलकत्ता। - आपने २६ दिसम्बर सन् १९२३ को काशी (बनारस) नगर मे जैन-धर्म के विषय में व्याख्यान दिया उसके सार रूप कुछ वाक्य उद्धृत करते हैं।
जैन साधु...........एक प्रशंसनीय जीवन व्यतीत करने के द्वारा पूर्ण रीति से व्रत, नियम और इन्द्रिय संयम का पालन करता हुआ, जगत के सम्मुख आत्म संयम का एक बड़ा ही उत्तम आदर्श प्रस्तुत करता है । प्राकृत भाषा अपने सम्पूर्ण मधमय सौन्दर्य को लिये हुए जैनियों की रचना में ही प्रकट की गई है।