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भगवान् महावीर
न्यमान लोग अधो-वन से युक्त मूर्ति और साधु को पसन्द करते हैं तो ऐसा करने का उन्हें अधिकार है। इसके लिए दिगम्बरों का यह कहना है कि नहीं, मोक्ष तो दिगम्बरत्व में ही है श्वेताम्बरी मोक्ष पा ही नहीं सकते सर्वथा अनुचित है। इसी हठ, दुराग्रह, से हमारी जाति इतनी पतित हुई और हो रही है। और इस पर तुर्रा यह कि हम इस हठ और दुराग्रह के पीछे झट महावीर का नाम लगा देते हैं। श्वेताम्बरी उनकी मूर्ति बना कर उनको लंगोट पहना देते हैं एवं आँखे, केशर, चन्दन लगा कर अपनी सम्पत्ति बना लेते हैं और दिगम्बरी उनकी नग्न-मूर्ति बना कर उन्हे अपनी जायदाद समझ लेते हैं। यदि मूर्ति नग्न हुई तो फिर वह महावीर ही की क्यों न हों श्वेताम्बरी कभी उसकी पूजा न करेंगे और इसी प्रकार केशर चन्दन युक्त मूर्ति को दिगम्बरी भी नमस्कार न करेंगे। भगवान् महावीर के इन अनुयायियों से भगवान महावीर के नामकी कितनी दुर्गति हो रही
है। यदि आज भगवान् महावीर होते तो न मालूम श्वेताम्बरी , उन्हे जवर्दस्ती लंगोट पहनवाते या दिगम्बरी उनकी लगोटी
को जवर्दस्तो छीन लेते । पर वे महात्मा इस पञ्चम काल की पापमय भूमि में आने ही क्यो लगे ?
इन मूर्तियों के पीछे आज हम लोगों का जितना कलह बढ़ रहा है, जितनी सम्पत्ति धूल धानी हो रही है, जितनी शक्तियाँ खर्च हो रही हैं उनका कोई हिसाब नहीं। इस कलह के अग आओ को कोर्ट मे जाने के पूर्व जरा यह सोच लेना चाहिए कि जैनधर्म जड़वादी नहीं है और न वह मूर्तियो को सचेतन पदार्थ समझता है। मूर्तियो की स्थापना ही इसलिए हुई है कि