SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ छा 1 घराने का अस्थिर व्यवसाय छोड़ कर खेती करना प्रारम्भ किया । इस व्यवसाय के कारण ये लोग स्थायी रूप से मकान बना २ कर रहने लगे । धीरे धीरे इन मकानो के भी समुदाय बनने लगे, और वे ग्राम सज्ञा से सम्बोधित किये जाने लगे। इस प्रकार स्थायी रूप से जम जाने पर कुदरत के कानूनानुसार इन लोगो के विचारो मे परिवर्तन होने लगा | इधर उधर फिरते रहने की अवस्था में उनके हृदय में स्थल अभिमान उत्पन्न नहीं हुआ था, पर अब एक स्थल पर स्थायी रूप से जम जान के कारण उनके मनोभावों मे स्थलाभिमान का सचार होने लगा । इसके अतिरिक्त यहां के मूल निवासियों को इन लोगों ने अपने गुलाम बना लिये थे और इस कारण उनके हृदय में स्वामित्व, और दासत्व, श्रेष्ठत्व और हीनत्व की भावनाओं का संचार होने लग गया | उनके तत्कालीन साहित्य में जित और जेता की तथा आर्य व अनार्य की भावनाएँ स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती हैं । ये भावनाएँ यही पर खतम न हुई । श्रभिमान किसी भी छिन से जहां घुसा कि फिर वह अपना विस्तार बहुत कर लेता है । आय के मनमें केवल अनाय्यों के ही प्रति ऐसे मनो-विकार उत्पन्न होकर नही रह गये प्रत्युत आगे जाकर उनके हृदयो में आपन में भी ये भावनाएँ दृष्टि गोचर होने लगी । क्योंकि इन लोगों में भी सब लोग समान व्यवसाई तो थे नहीं सब भिन्न भिन्न व्यवसाय के करने वाले थे। कोई खेती करता था, कोई व्यापार करता था, कोई मजदूरी करता था तो कोई अध्ययन का काम करके अपना जीवन निर्वाह करता था । कोई उच्च कर्म करता था और कोई निकृष्ट । उत्कृष्ट व्यवसायी लोग निकृष्ट व्यव भगवान् महावीर
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy