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मगवान् महावीर
४३८ (११) विक्रम संवत् १५६२ में कटुकमत की स्थापना हुई। (१२) विक्रम संवत् १५७० में वीजा मत का प्रारम्भ हुआ।
(१३) विक्रम १५७२ में पार्श्वचन्द्र सूरि ने अपने पक्ष की स्थापना विरम गाँव में की।
उसके पश्चात् इसी वृक्ष मे से स्थानकवासी, तेरापंथी, भीखम पंथी, तीन थोई वाले, विधि पक्षी आदि कई शाखाएँ तथा चौथ पंचमी का झगड़ा, अधिक मास का झगड़ा, चौदस पूर्णिमा का झगड़ा, उपधान का झगड़ा, श्रावक प्रतिष्ठा कर सकता है या नहीं इस विषय का झगड़ा, आदि कई झगड़े निकले और मजा यह कि इन सबो की पुष्टि करनेवाले कई ग्रंथ-रत्न भी हमारे साहित्य मे दृष्टिगोचर होने लगे, और ये सब लोग आपस मे बुरी तरह लड़ने लगे।
इधर दिगम्बरियों में भी मतमतान्तरो का बढ़ना प्रारम्भ हुआ। द्राविड़ संघ, व्यापनीय संघ, काष्ठासंघ, माथुर संघ, भिल्लक संघ, तेरा पंथ, वीस पंथ, तारण पंथ, भट्टारक प्रथा वगैरह अनेक मतमतान्तर इनमें भी प्रचलित होकर आपस में लड़ने लगे।
इन सब बातों का फल यह हुआ कि, चरित्र और आचार के उज्वलरूप जो हमारी आत्मा का विकास करते थे इस मतभेद के कोहरे में विलीन हो गये। हमारी सारी शक्तियाँ हमारी सब भावनाएँ आचार और तत्वज्ञान के मार्ग को छोड़ कर इस तूतू मैंमैं में आगई। धर्म एक निर्वाह का साधन बन गया । यहाँ तक कि इस मतभेद के वायुमण्डल से धार्मिक साधु भी बचे । बरिफ यह कहना भी अनुपयुक्त न होगा कि कुछ