SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर ७ g ४३४ दमन की तथा सन्प्रवृत्तियो के विकास की शिक्षा दे । सभी धर्म प्रायः इसी उद्देश्य को लेकर पैदा होते हैं । लेकिन हर एक धर्म की यह स्थिति वही तक स्थिर रहती है जब तक समाज में दैवी सम्पद का आधिक्य रहता है, जब तक धर्म की बागडोर उन महान् पुरुषो के हाथ में रहती हैं जो हृदय से अपना और मनुष्य जाति का कल्याण करने के इच्छुक रहते हैं । लेकिन यह स्थिति हमेशा स्थिर नही रह सकती, यह हो नही सकता कि किसी समाज में परम्परा तक देवी सम्पद् का ही आधिक्य रहे अथवा किसी धर्म की बागडोर हमेशा निस्वार्थी महान् पुरुषों ही हाथ मे रहे । यदि ऐसा होता तो फिर प्रकृति की परिवर्तन शीलता का कोई प्रमाण ही न रह जाता । के दैवी सम्पद् युक्त समाज मे भी किसी समय श्रसुरी सम्पद् का प्रभाव हो ही जाता है और उत्कृष्ट से उत्कृष्ट धर्म की बागडोर भी कभी स्वार्थ लोलुप लोगो के हाथ में चली जातो है । परिणाम इसका यह होता है कि वे लोग धर्म के असली तत्वों के साथ २ धीरे २ ऐसे तत्त्व भी मिलाते जाते हैं जिनसे उनकी स्वार्थसिद्धि में खूब सहायता मिले, इस मिलावट का परिणाम यह होता है कि जो उन्ही के विचारों वाले स्वार्थ लोलुप प्राणी होते हैं वे तो तुरन्त उस परिवर्तन को स्वीकार कर लेते हैं, पर समाज में हर समय किसी न किसी तादाद मे ऐसे लोग मी अवश्य रहते हैं जो सच्चे होते हैं— जो असली तत्व को सम ने वाले होते हैं और जो निस्वार्थ होते हैं । उन्हे यह परिवर्तन असा लगता है वे उसका विरोध करते हैं, फल यह होता है कि समाज में भयङ्कर चादविवाद का तहलका मच जाता है, दोनों
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy