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भगवान महावीर
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उपस्थित हुआ उसी समय वहाँ पर दो दल हो गये। एक ने तो समय की परिस्थिति के अनुकूल वस्त्र पहनने की व्यवस्था दी
और दूसरे ने परम्परा के वशीभूत होकर नग्न रहने की। ऐसे विवादग्रस्त समय में दीर्घदर्शी स्कंदिलाचार्य ने बड़ी ही बुद्धिमानी से काम लिया। उन्होंने न तो नन्नता का और न वस्त्र पात्रवादिता का ही समर्थन किया प्रत्युत दोनों के बीच उचित न्याय दिया। उन्होंने कही भी सूत्रों मे जिनकल्प, स्थविरकल्प श्वेताम्बर तथा दिगम्बर का उल्लेख नहीं किया। फिर भी उस समय प्रत्यक्ष रूप से समाज दो दलों में विभक्त हो ही गया। ___ उदार जैन-धर्म दो अनुदार दलों में विभक्त हो गया, एक पिता के पुत्र अपना २ हिस्सा बाँट कर अलग हो गये, पिता के घर के बीच में दीवाल वनाना प्रारम्भ हो गई। दोनो सम्प्रदाय महावीर को अपनी २ सम्पत्ति बनाकर झगड़ने लगे। अनेकान्तवाद और अपेक्षावाद के महान सिद्धान्त को भूल कर दोनों आपस में ही फाग खेलने लगे। एक दूसरे को परास्त करने के लिए दोनों ने वर्द्धमान का नाम देदे कर शाखों की भी रचना कर ली।
दोनो दल धार्मिकता के आवेश मे आकर इस बात को भूल गये कि मुक्ति का खास सम्बन्ध आत्मा और उसकी वृत्तियों के साथ है न कि नग्नता और वख पात्रता के साथ । ये दोनो पक्ष अपनी भावी सन्तानों को भी उसी मत पर चलने से मुक्ति मिलने का परवाना दे गये हैं। जिसके परिणम स्वरूप
आज को सन्ताने न्याय के रंगमंचों पर मुक्ति पाने की चेष्टाएँ कर रही हैं।