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________________ ४२५ भगवान् महावीर गाइस प्रकार श्वेताम्बरो के प्रामाणिक प्रन्धों में कहीं भी ऐसा नहीं पाया जाता जहाँ पर वस्त्र और पात्र के लिए विशेष आग्रह किया गया हो या जहाँ पर यह कहा गया हो कि इनके विना मुक्ति ही नहीं, इनके विना संयम ही नहीं, अथवा इनके सिवा कल्याण ही नहीं। उनमे तो साफ २ बतलाया गया है कि जो साधु वस्त्र और पात्र रहित रहकर भी निर्दोप संयम पालन कर सकताहो उसके लिए वन और पात्र की कोई आवश्यकता नहीं । हाँ, जो इनके विना सयम का पालन न कर सकता हो वह यदि वन पात्र को रक्खे तो कोई वाधा नहीं। दोनों का ध्येय सयम है, दोनो का रहेश्य त्याग है और दोनों का मजिले मकसूद मोक्ष है। वस्त्रपात्र रखनेवाले को वस्त्रपात्र का गुलाम बन कर न रहना __ चाहिए और इसी प्रकार नग्न रहनेवाले को भी नग्नता का दासत्व न करना चाहिए। किसी भी प्रकार का एकान्त दुराग्रह न करते हुए आवश्यकताओं को कम करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए । इसी प्रकार के मार्ग का भगवान् ने उपदेश दिया है और यही आर्य ग्रन्था में अंकित है। हम समझते हैं कि यहाँ तक दिगम्बर ग्रन्थो को विशेष आक्षेप करने का अवकाश न मिलेगा। इसमें सन्देह नहीं कि उनमें बीमार पड़ने पर भी अथवा मृत्यु के मुख में पहुँचने तक भी साधु को वस्त्र, पात्र, धारण करने की आना नहीं है। सयम के उग्र-पोपक दिगम्बर ग्रन्थ खाने पीने की रियायत की तरह वख और पात्र की भी कुछ रियायत रखते तो ठीक था । अभ्यासी और उम्मेदवार मनुष्यों को एकदम इतने कठिन व्रत का पालन करना बहुत ही मुश्किल वल्कि असम्भव होता
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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