SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 389
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२३ भगवान महावीर रहना पड़ता है वहाँ डॉस, मच्छर वगैरह जीवों का उपद्रव विशेष सम्भव है. इसलिए जो साधु इन कष्टों को सहन न कर सके वह किम प्रकार संयम का पालन कर सकता है। अतिरिक्त इसके जो माधु लज्जा को नहीं जीत सकता उसके लिए भी वहा की आवश्यक्ता होती है। हॉ. लज्जा को जीतने के पश्चात् अथवा संयम पालन करने की शक्ति हुए पश्चात् वह चाहे तो पान और वख रहित रह सकता है। विक्रम की सातवीं और पाठवीं शताब्दी तक तो साधु लोग सकारण ही वस्त्र रसते थे। वह भी केवल एक पटिवत्र । यदि कोई साधु कटिवस्त्र भी अकारण पहनता तो कुसाधु सममा जाताया। श्री हरिभद्र सूरि 'सम्बोधन प्रकरण में लिसंत है: "कीयो न कुणइ रोय, एनई पदिमाइ जलमुवणेद । सौगाहणोय हिंद यंधर करि पत्य मकने ॥ अर्थात्-सीव-दुर्बल साधु लोच नहीं करते, प्रतिमा को बहन करने में लजित होते है, शरीर का मैल खोलते हैं और निराकारण ही कटिवस्त्र को धारण करते हैं। इसमे मारम होता है कि उस समय में साधु वल एक कटिवन्न रसते थे। इस सम्बन्ध में आचाराङ्ग सूत्र में कहा गया है। (१) जो मुनि अचेल (वसहित) रहते हैं उनको यह चिन्ता नहीं रहती कि मेरे वस्त्र फट गये है दूसरा वस्त्र मांगना पंगा, अथवा उसको जोड़ना पड़ेगा, सीना पड़ेगा, आदि (३६०) (२) वस रहित रहने वाले मुनियों को घार २ कांटे लगते हैं, उनके शरीर को जाड़े का, ढांसों का, मच्छरों का आदि
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy