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________________ ४१५ भगवान् महावीर सब लोग इन उपदेशों को अपनी २ शक्ति के अनुसार कंठस्थ कर रखते थे। वर्तमान में हम जिसको "एकादशाङ्ग सूत्र” कहते हैं उसका मूल यही उपदेश थे। समय के प्रवाह में पड़ कर उन मूल उपदेशों में और आज के एकादशाङ्ग सूत्र में बहुत अन्तर पड़ गया है । यह निश्चित है कि, भगवान् महावीर के इन उपदेशात्मक वाक्य समूह को उनके शिष्य अपनी आत्म जागृति के लिये ज्यों के त्यों कंठस्थ रखते थे । ये उपदेश बहुत सक्षिप्त शक्यों में होने से ही सूत्र नाम से प्रसिद्ध हुए और इसी कारण वर्तमान के उपलब्ध विस्तृत सूत्र भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो रहे हैं। जो सूत्र शब्द गणधर भगवान् के समय में अपने वास्तविक अर्थ को ( "सूचनात् सूत्रम्" ) चरितार्थ करता था वही सूत्र शब्द आज संप्रदायिक रूढ़ी के वश में होकर हजारों लाखों लोक अपने भाव में समाने लग गया है । यह कहने की आवश्यकता नहीं कि, जहाँ तक गणधरों के पश्चात् उनके शिष्यों ने इन संक्षिप्त सूत्रों को कण्ठस्थ रक्खे थे वहाँ तक उनकी अर्धमागधी भाषा में जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ होगा । पर जब उन सूत्रों का शिष्यपरंपरा में प्रचार होने लगा और वह शिष्यपरंपरा भिन्न २ देशों में विहार करने लगी तभी सम्भव है कि, सूत्रों की मूलभाषा भिन्न २ देशो की भाषा के संसर्ग से परिवर्तन पाने लगी होगी । इसके अतिरिक्त प्रकृति के भयङ्कर प्रकोप से भी हमारे साहित्य को बड़ा भारी नुकसान पहुँचा । श्री हेमचन्द्राचार्य अपने परिशिष्ट-पर्व में लिखते हैं कि भगवान् महावीर की दूसरी शताब्दि में जब कि, आर्य श्री स्थूल-भद्र विद्यमान थे उस समय देश में
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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