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नौवां अध्याय RESU
जैन-धर्म का विश्वव्यापित्व
किसी भी धर्म की उत्तमता की परीक्षा उसके विश्वव्यापी सिद्धान्तों पर बड़ी ही आसानी के साथ की जा सकती है । जो धर्म जितना ही अधिक विश्वव्यापी होता है अथवा हो सकता है उतना ही अधिक उसका गौरव समझा जाता है । पर प्रश्न यह है कि उसके विश्वव्यापित्व को परीक्षा किन सिद्धान्तों के आधार पर की जाय । भिन्न भिन्न विद्वान् भिन्न भिन्न प्रकार से इस कसौटी पर धमों की जांच करते हैं, अभी तक कोई भी इस प्रकार की निश्चित कसौटी नहीं बना सका है कि जिस पर भी सब धर्मों की जाँच करके उनकी उत्कृष्टता अथवा निकृष्टता की 'जाँच कर ली जाय ।
हमारे ख्याल से जो धर्म सामाजिक करते हुए व्यक्ति को ध्यात्मिक उन्नति के वही धर्म विश्वव्यापी भी हो सकता है। विद्रोह, व्यभिचार आदि जितनी भी बातें नष्ट करने वाली हैं उनको मिटा कर जो धर्म, दया, नम्रता, बन्धुप्रेम और ब्रह्मचर्य्यं की उच्च शिक्षाएँ देकर सामाजिक शान्ति को
शान्ति की पूर्ण रक्षा मार्ग में ले जाता है, हिंसा, क्रूरता, बन्धुसामाजिक शान्ति को