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भगवान महावीर
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जैनियों के नीति शास्त्र में से यहाँ पर सिर्फ दोही बातों का उल्लेख करता हूँ। इस विषय मे जैनों के नीति शास्त्र में बिल्कुल पूर्णता से विचार किया गया है। उनमें से पहिली वात "जगत के तमाम प्राणियों के साथ सुख-समाधान पूर्वक किस प्रकार एकत्र रहा जा सकता है यह प्रश्न है। इस प्रश्न के सम्मुख अनेक नीतिवेत्ताओ को पनाह मांगनी पड़ती है। आज तक इस प्रश्न का निर्णय कोई न कर सका । जैन शास्त्रों में इस प्रश्न पर विल्कुल सुलभता और पूर्णता के साथ विचार किया गया है। दूसरे प्राणी को दुख न देना या अहिसा, इस विषय को जैन शाखा में केवल तात्विक विधि ही न बतला कर ख्रिस्ती धर्म मे दी हुई इस विषय की आज्ञा से भी अधिक निश्चयपूर्वक और जोर देकर आचरणीय आचार बतलाया है।
इतनी ही सुलभता और पूर्णता के साथ जैनधर्म मे जिस दूसरे प्रभ का स्पष्टीकरण किया है वह स्त्री और पुरुष के पवित्र सम्बन्ध के विषय मे है। यह प्रश्न वास्तव में नीति शास्त्र ही का नहीं है वरन जीवन शास्त्र और समाज शान के साथ भी इसका घनिष्ट सम्बन्ध है । मि० माल्थस ने जिस राष्ट्रीय प्रश्न को अर्थ शास्त्र के गम्भोर सिद्धान्तों के द्वारा हल करने का प्रयन किया है और जगत की लोक संख्या की वृद्धि के कारण होने वाली सङ्कीर्णता के दुष्ट परिणामों का विचार किया है उस प्रश्न का समाधान भी जैन धर्म मे बड़ी सुलभता के साथ किया है । जैन धर्म का यह समाधान प्रजा वृद्धि के भयङ्कर परिणामो की जड़ का हो मूलच्छेद कर डालता है। यह समाधान ब्रह्मचर्य्य सम्बन्धी है।