________________
३९९
भगवान महावीर
फल्पना सुप्रसिद्ध जर्मन महातत्वज्ञ निशे ( Supermen ) मनुष्यातीत कोटि की कल्पना के साथ बराबर मिलती हुई दृष्टिगोचर होती है और इसी विपय में मुझे जैन-धर्म को अनीश्वरवादी समझ कर उसके धर्मव पर श्राघात करना चाहते हैं उनके साथ में प्रवल विरोध करने को तैय्यार है। मेरा ख्याल है कि बौद्धिक (तत्वज्ञानात्मक) अग का उत्तम रीति से पोषण करने के लिये आवश्यकतानुसार ही उच्चतम ध्येय को हाथ में लेकर जैन-धर्म ने देव सम्बन्धी कल्पना आवश्यकीय होने से अपना धर्मत्व कायम रखने के लिये धर्म के प्रधान लक्षणों को अपने से बाहर न जाने दिया। इस कारण जैन-धर्म को न केवल आर्य धमां ही की प्रत्युत तमाम धर्मों की परम मर्यादा समझने में भी कोई हानि नहीं मालूम होती।
धर्म के तुलनात्मक विज्ञान में इस परम सीमात्मक स्वरुप के कारण ही जैन धर्म का बड़ा महत्व प्राप्त हुआ है। केवल इसी एक ष्टि से नहीं प्रत्युत तत्वज्ञान, नीतिज्ञान और तर्क विद्या की दृष्टि से भी तुलनात्मक विज्ञान मे जैनधर्म को उतना ही महत्व प्राप्त है । पर्याप्त समय के न होने पर भी मैं जैनधर्म की श्रेष्ठता के सूचक कुछ विषयों का सक्षिप्त विवेचन करता हूँ।
अनन्त संख्या की उत्पत्ति जो जैनों के "लोक-प्रकाश" नामक ग्रन्थ में बतलाई गई है, आधुनिक गरिणत शास्त्र की उत्पत्ति के साथ वगवर मिलती हुई है। इसी तरह दिशा
और काल के अभिन्नल का प्रश्न जो कि साम्प्रत में इन्स्टीन की उत्पत्ति के लिए आधुनिक शाखज्ञों में वादग्रस्त विपय हो पढ़ा है, उसका भी निर्णय जैन-तत्वज्ञान में किया गया है।