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________________ भगवान् महावारि सन्धान नहीं मिलता, तथापि आज कल यह मत अधिक प्रचलित है कि उरल पर्वत की पूर्व अथवा पश्चिम इन दोनों दिशाओं में से किसी एक दिशा के विल्कुल उत्तर की ओर पार्य जाति का मूल स्थान था। इसी उत्तरीय मूलस्थान मे निकल कर आयों ने आनेय और नैऋत्य इन दो दिशाओं की ओर गति की। जिस काल को हम ऐतिहासिक काल कहते हैं उसमें मालूम होता है कि आर्य लोग यूरोप के अन्तर्गत बसे हुए थे उन्होंने वहाँ के मूल निवासियों को वहाँ से निकाल कर अपनी उच्च सुधारणाओ और विकसित धर्म विचारों के अनेक केन्द्र स्थापित किये थे। जो शाखा श्राग्नेय कोण को गई थी उमने ईरान तथा भरत खण्ड को व्याप्त कर दिया। इन लोगों के धर्म विचार बहुत ही उस कोटि के थे। इघर तो एशिया के दक्षिण विभाग में आर्य-विचारो का विकास हो रहा था, उधर सेमेटिक जातियों में एक नवीन धर्मभावना जन्म ले रही थी। वह भावना महम्मदी अथवा इसलामी धर्म की थी। ___इन भिन्न भिन्न एतिहासिक परिवर्तनो के फल स्वरूप जगत के तमाम धर्मों को आधुनिक विशिष्ट रूप प्राप्त हुआ। समेटिक जातियों में पैदा होने वाले यहूदी ख्रिस्ती और महम्मदी धर्मों का तो लगभग सारी दुनियाँ में प्रचार हो गया पर आर्य-धर्म का प्रचार एशिया के दक्षिण और पूर्व वाले देशों ही मे होकर रह गया। शेष सब देशों से इसका लोप हो गया। जिन स्थानो पर वह टिका रहा वहाँ भी अन्य धर्मों के भयङ्कर आघात उसे सइन करने पड़े। इस प्राचीन आर्य-धर्म की अनेक , सततियों में से
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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