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________________ ३७१ भगवान महावीर क्रोध का निग्रह क्षमा से होता है-मान का पराजय मृदुता से होता है-माया का संहार सरलता से होता है-और लोभ का निकदन संतोप से होता है-इन कपायो को जीतने के लिये इन्द्रियो को अपने अधिकार में करना चाहिये, इन्द्रियों पर सत्ता जमाने के लिये मनः शुद्धि की आवश्यकता होती हैमनोवृतियों को रोकने की आवश्यकता होती है, वैराग्य और प्रक्रिया के अभ्यास से मन का रोध होता है। मनोवृत्तियाँ अविकृत होती हैं । मन को रोकने के लिये राग द्वेप को अपने काबू में करना बहुत जरूरी है-रागद्वेप रूपी मैल को घोने का कार्य समता रूपी जल करता है। ममता के विना. मिटे समता का प्रादुर्भाव नहीं होता। ममता मिटाने के लियेकहा गया है कि: 'भनिन्यं संसारे भवति सकलं यनयनगम् ।' अर्थात्-'आंखों से इस ससार में जो दिखता है वह सब अनित्य है' ऐसीअनित्य भावना, और "अशरण' आदि भावनाएँ करनी चाहिये, इन भावनाओ का वेग जैसे जैसे प्रवल होता जाता है वैसे ही वैसे ममत्व रूपी अधकार क्षीण होता जाता है और समता की दैदीप्यमान ज्योति जगमगाने लगती है। ध्यान, की मुख्य जड़ समता है। समता की पराकाष्ठा ही से चित्त किसी एक पदार्थ पर स्थिर हो सकता है। ध्यान श्रेणी में आने के बाद-लब्धियां सिद्धियां प्राप्त होने पर यदि फिर से मनुष्य मोह *१-"प्रमशय महाबाहो ! मनो निग्रह चलम् । अभ्यासेन च कौन्तेय ! वैराग्येण च गृह्यते ॥" (भगवद्गीता)
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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