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भगवान् महावीर
देशविरति - सम्यक्त्व सहित, गृहस्थ के व्रतो को परिपालन करने का नाम देश विरति है । 'देश विरति', - शब्द का अर्थ हैसर्वथा नहीं - मगर अमुक अंश मे पाप कर्म से विरत होना ।
प्रमत्त गुणस्थान- उन मुनि महात्माओं का है कि जो पश्च महात्रता के धारक होने पर भी प्रमाद के बंधन से सर्वथा मुक्त नही होते हैं ।
अप्रमत्त गुणस्थान - प्रमाद बंधन से मुक्त हुए महामुनियों का यह सातवां गुणम्धान है ।
पूर्व + करण - मोहनीय कर्म को उपशम या क्षय करने का अपूर्व (जो पहिले प्राप्त नहीं हुआ) अध्यवसाय इस गुणस्थान में प्राप्त होता है ।
अनिवृत्ति गुणस्थान- इसमे पूर्व गुणस्थान की अपेक्षा ऐसा अधिक उज्ज्वल श्रात्म परिणाम होता है कि जिससे मोह का उपशम या क्षय होने लगता है ।
सूक्ष्म' सपराय - छक्त गुण स्थानों में जब मोहनीय कर्म का क्षय या उपशम होते हुए सूक्ष्म लोभांशही शेष रह जाता है, तब यह गुण स्थान प्राप्त होता है ।
+ 'करण' यानी अध्यवसाय - आत्म परिणाम 1,
''मम्पराय' शब्द का अर्थ कपाय होता है-परंतु यहाँ 'लोभ' समझना चाहिये ।
२-यहाँ और ऊपर नीचे के गुण स्थानों में 'मोह' 'मोहनीय' ऐसे सामान्य शब्द रक्खे हैं मगर इससे मोहनीय कर्म के जो विशेष प्रकार घटित होते हैं उन्हीं को यथायोग्य ग्रहण करना चाहिये, अवकाश के प्रभाव से यहाँ उनका उल्लेख नहीं किया गया है 1