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भगवान महावीर
लगअगर व मिल जाते हैं तो उसे सुख का भास होता है, और उन पदायों पर अधिकार करके वह मान करता है, फिर उनको रखने या और इकट्ठे करने के लिए माया करता है। अगर कोई उनको उससे ले ले या उन सङ्ग्रह करने में बाधा डाले या उसके मान की हानि करे तो वह क्रोध करता है। ये क्रियाये माननिक भी होती हैं।
इस तरह कर्मों का श्रागमन होता है। परन्तु कर्म जीव पर तभी प्रबल होते हैं जब जीव इच्छा के वश मे, दीनता की दशा में, अपने स्वाभाविक शुद्धोपयोग रूप निज वल को छोड कर निर्वल होता है।
नं पुल के अति सूक्ष्म परमाणु जीव के भावों और क्रियाओं के निमित्त से उसके बन्धन होते हैं। इन कर्मवर्गों में बन्धन के चार विशेपण होते हैं, एक प्रकृति-बन्धन (Quality ॥ (Ik matter) जिम अनुसार कर्मवों में भिन्न भिन्न प्रकार की शक्तियाँ होती है, दूसरे प्रदेश-बन्धन ( Extent of hit matter ) जिसके अनुसार आत्म-प्रदेशों से कर्म प्रदेशों का मन्यन्य होता है, तीसरे स्थिति बन्धन (Duration of .. ....'c matter ) जिसके अनुसार कर्मवों की सत्ता या उदयकाल का प्रमाण होता है, और चोथे अनुमाग-बन्धन (Qurallly of Intensity of Karmic maller ) जिम अनुसार कर्मवों मे फलदायक शक्ति होती है।
प्रकृति और प्रदेश-बन्धन योगों के अनुसार होते हैं और स्थिति और अनुभाग-बन्धन कपायों के अनुसार। जीव के भावी की हालत योगों और कपायों का जैसा फल हो वैसी होती है ।