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________________ भगवान् महावीर अनित्य और नित्य दोनों धर्म वाला है ?" उमके उत्तर में कहना कि-"हाँ. घट अमुक अपेक्षासे अवश्यमेव नित्य और अनित्य है।" यह तोसरा वचन-प्रकार है। इस वाच्य से मुख्य तथा अनित्य धर्म का विधान और उसका निषेध, क्रमशः क्यिा जाता है । (त्यादस्तिनाति) ४-चतुर्थ शब्द प्रयोग-"घट किसी अपेक्षा से प्रवक्तव्य है।" घट अनित्य और नित्य दोनों तरह से क्रमश. बताया जा सत्ता है। जैसा कि तीसरे शब्द प्रयोग में कहा गया है। मगर यदि क्रम विना. युगपत् ( एक ही साथ ) वट को अनित्य और नित्य बताना हो तो, उसके लिए जैन शास्त्रकारों ने-'अनिल' 'नित्य' या दूसरा कोई शब्द उपगेगी न सम-इन 'अवतन्य' शब्द का व्यवहार किया है। यह भी ठीक है। घट जैसे अनित्य रूप से अनुभव में आता है। उसी तरह नित्य रूप से भी अनुभव में आता है। इससे घट जैसे केवल अनित्य __ रूप में नहीं ठहरता वैसे ही केवल नित्य रूप में भी घटित नहीं होता है। बल्कि वह नित्यानित्य रूप बिलजण जाति वाला ठहरता है। ऐसी हालत में घट को यदि यथार्थ त्य में नित्य और अनित्य दोनों तरह से क्रमशः नहीं, किन्तु एक ही साथ बताना हो तो शाखकार कहते हैं कि इस तरह बताने के लिये कोई शब्द नहीं है । अतः घट अवक्तव्य है। चार वचन प्रकार बताये गये। उनमें मूल तो प्रारम्भ के दो हो हैं। पिछले दो वचन प्रकार प्रारम्भ के संयोग से उत्पन्न हुए हैं। "कथंचित-अमुक अपेक्षा से घट अनित्य ही है।" "कथंचित-अमुक अपेक्षा से घट नित्य ही है"। ये प्रारम्भ के
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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