SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२९ भगवान महावीर मानने वाले ब्रह्मवादी न्यावाद का तिरस्कार नहीं कर सकते। भिन्न भिन्न नयों की अपेक्षा से भिन्न भिन्न अर्थों का प्रतिपादन करने वाले बंद भो सर्वतन्त्र सिद्ध त्याद्वाद को धिकार नहीं दे सकते।" सप्त भङ्गी वन्तुत्व के खरूप का सम्पूर्ण विचार प्रदर्शित करने के लिए जैनाचाव्यों ने सात प्रकार के वाक्यों की योजना को है-वह इस प्रकार है१ न्यादस्ति कथंचित है २ न्यान्नास्ति " नहीं है ३ न्यादतिनाति ___" है और नहीं है। ४ यादवक्तव्यम् कचित अवाच्य है। ५ बादम्ति श्रवक्तव्यमच " है और अवार है। ६ म्यान्नाति श्रवक्तव्यमच " नही और अवाच्य है। ७ म्यादस्ति नास्ति वक्तव्यंच" है नहीं और अवाच्य है। -प्रश्रम शब्द प्रयोग-'यह निश्चित है कि घट "सत्" है मगर "अमुक अपेक्षास" इस वाक्य से अमुक दृष्टि ने घट में मुख्यतया अस्तित्व धर्म का विधान होता है । (स्यादस्ति) २-दूसरा शब्द प्रयोग-यह निश्चित है कि घट "असत्" है, मगर अमुक अपेना से। इस वाक्य द्वारा घट में अमुक अपेक्षा में मुख्यतया नास्तित्व धर्म का विधान होता है । (स्यान्नास्ति) ३-तीसरा शब्द प्रयोग-किसी ने पूछा कि-"घट क्या
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy