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भगवान् महावीर अशोक अहिंसा-धर्म के सब से बड़े उपासक और प्रचारक थे। पर उनके काल में भारत कभी पराधीन नहीं हुआ। उस समय यहाँ की प्रजा में जो वीर्य, शान्ति और साहस था, वह आज कल की दुनिया में कहीं नसीब नहीं हो सकता। दक्षिण भारत के पल्लव और चालुक्य वंश के प्रतापी राजा अहिंसा-धर्म के अनुयायी थे, पर इनके राज्य-काल में किसी भी विदेशी ने आकर भारत को सताने का साहस नहीं किया। इतिहास खुले खुले शब्दों में कह रहा है कि भारतवर्ष के लिये अहिसा-प्रधान युग ही स्वर्णयुग रहा है। जब तक यहां पर बौद्ध और जैनधर्म का जोर रहा, जवतक ये धर्म राष्ट्रीयधर्म की तरह भारत मे प्रचलित रहे तव तक भारतवर्ष में स्वतत्रता, शान्ति और सम्पत्ति यथेष्ट रूप में विद्यमान थी। अहिंसाधर्म के श्रेष्ठ उपासक उपरोक्त नृपतियो ने अहिसाधर्म का पालन करते हुए भी अनेक युद्ध किये और अनेक शत्रुओ, को पगजित किया था। जिन लोगों को गुजरात और राजपूताने के इतिहास का कुछ भी ज्ञान है, वे इस बात को भली प्रकार जानते हैं कि इन देशों को स्वतंत्र, समुन्नत और सुखी रखने के निमित्त जैनियो ने कितने बड़े बड़े पराक्रम-युक्त कार्य किये थे। गुजरात के सारे इतिहास मे वही भाग सब से अधिक चमक रहा है जिसमे जैन राजाओं के शासन का वर्णन है। उस समय गुजरात का ऐश्वर्या चरम सीमा पर पहुँच चुका था। वहाँ के सिंहासन का तेज दिगदिगन्त में व्याप्त था, गुजरात के इतिहास मे दण्डनायक विमल शाह, मंत्री मुजाल, मंत्री शान्तु, महामात्य उद्दयन और वाहड़, वस्तुपाल और तेजपाल, प्रामु और जगडू इत्यादि