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भगवान महावीर
२७८ कर दी थी। केवल वह सगीत कला की शिक्षा अभी तक उसे न दे सका था। वह सगीत कला मे पारङ्गत एक अध्यापक की खोज में था। कुछ समय पश्चात् उसे पता लगा कि कौशाम्बीपति राजा "उदयन" सगीत कला में अत्यन्त निपुण हैं। यह सुन उसने कई कौशलो से राजा उदयन को हरण कर मंगवा लिया और उसे कहा कि मेरे एक आँख वाली एक पुत्री है। उसे तुम सङ्गीत कला में निपुण कर दो। यदि तुम इस बात को स्वीकार करने मे आनाकानी करोगे तो "मैं तुम्हे कठिन बन्धन मे डाल दूंगा।" राजा उदयन ने भी उस समय की परिस्थिति को देख प्रद्योत का कथन स्वीकार किया। तब प्रद्योत ने उमे कहा-"मेरी कन्या एकाक्षी है इसलिए तुम उसकी
ओर कभी मत देखना क्योकि तुम्हारे देखने से वह अत्यन्त लज्जित होगी।" इस प्रकार उदयन को कह कर वह अन्तःपुर को गया। वहाँ जाकर उसने वासवदत्ता से कहा-"तरे लिये गन्धर्व-विद्या विशारद एक गुरु चुलवाया है वह तुझे सङ्गीतशास्त्र की शिक्षा देगा । पर वह कुष्टी है इसलिये तू कभी उसके सम्मुख न देखना ।" कन्या ने पिता की बात को स्वीकार किया। तत्पश्चात् वत्सराज उदयन ने उसको गन्धर्व विद्या की शिक्षा देना प्रारम्भ किया। प्रद्योत राजा के किये हुए कौशल से कुछ दिनो तक दोनो ने एक दूसरे की ओर न देखा । पर एक दिन वासवदत्ता के मन में उदयन को देखने की इच्छा हई । जिससे वह जान बूझ कर हत बुद्धि सी हो गई। तब उदयन ने उसको डाट कर कहा-"अरी एकाक्षी । पढ़ने में ध्यान न देकर तू क्यों गंधर्व विद्या का नाश करती है।" इस तिरस्कार से