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________________ भगवान् महावीर २६४ पित्तज्वर के कारण आज से छः मास के पश्चात् तू छद्मस्थ अवस्था में ही मर जायगा ।" महावीर ने कहा- गौशाला ! तेरा यह कथन व्यर्थ है । मैं तो अभी इसी कैवल्य अवस्था में सालह वर्ष तक और विहार करूंगा पर तू आज से सातवें दिन तेरी तेजोलेश्या से उत्पन्न हुए पित्तज्वर के कारण मृत्यु को प्राप्त होगा ।" फिर कुछ समय के पश्चात् तेजोलेश्या की भयङ्कर जलन से पीड़ित हो गौशाला वहीं पड़ गया। तब अपने गुरु की अवज्ञा से क्रोधित हुए गौतम वगैरह मुनि उससे कहने लगे---"अरे मूर्ख । जो कोई अपने धर्माचार्य के प्रतिकूल होता है, उसकी ऐसी ही दशा होती है । तेरी धर्माचार्य पर फेंकी हुई वह तेजोलेश्या कहां गई ?" उस समय गौशाला ने गड्ढे में पड़े हुए सिंह की तरह अत्यन्त क्रोधित दृष्टि से उनकी ओर देखा । पर अपने आप को असमर्थ देख वह क्रोध के मारे उछाले मारने लगा और फिर अत्यन्त कष्ट पूर्वक उठ कर हाय हाय करता हुआ वह अपने स्थान पर गया । छः दिन व्यतीत होने पर जब सातवे दिन उसका अन्त समय उपस्थित हुआ तो उसको सत्य ज्ञान का उदय हुआ । उसका हृदय पश्चाताप की अग्नि में भस्म होने लगा । तब उसने अपने सब शिष्यों को बुला कर कहा " हे शिष्यों । सुनो मैं अर्हन्त नहीं - - केवलो नहीं- मैं वीर प्रभु का शिष्य मंखली पुत्र गौशाला हूँ । आश्रय को ही भक्षण करनेवाली अभि के समान मैं श्री गुरु का प्रतिद्वन्दी हुआ हूँ । इतने काल तक दम्भ के मारे मैंने अपनी अत्मा और संसार को धोखा दिया है, इसके लिए तुम मुझे क्षमा करना" ऐसा कह कर वह मृत्यु पा स्वर्गलोक को गया ।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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