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________________ २५७ भगवान् महावीर को शरण है । पर इस समय मेरा पुत्र विलकुल बलहीन बालक है, इससे यदि मैं इसके हाथ राज्य भार दे चलो जाऊँ तो निश्चय है कि आसपास के राजा इसका पराभव कर सारा राज्य हड़प जायँगे। यद्यपि आप के सम्मुख कोई राजा ऐसा साहस नहीं कर सकता, पर आप हमेशा तो यहां रहेगे ही नहीं, रहेगे सुदूरवर्ती उज्ययिनो नगरी में। ऐसी हालत में "सांप तो सिर पर और बूटी पहाड़ पर" वाली कहावत चरितार्थ होगी, इसलिये यदि आप जियिनी से इटे मॅगवा कर कौशाम्बी के चारों तरफ एक मजबूत किला वधवा दें तो फिर मुझे आपके साथ चलने में कोई आपत्ति न रह जाय।" यह सुनते ही राजा चण्डप्रद्योत ने हर्षित चित्त से उसी समय किना बंधवाने की आज्ञा दे दी । भारी आयोजन के साथ किला बाँधना शुरू हो गया, कुछ दिन बीतने पर किला बिल्कुल तैयार हो गया," इसके पश्चात् मृगावती ने दूसरा दूत भेज कर प्रद्योत से कहलाया-"राजन् ! अब तुम धन, धान्य, और इधनादिक से नगरी को भरपूर कर दो, काम लोलुप चण्डप्रद्योत इतने पर भी मृगावती का मतलब न समझा और उसने वहुत शीघ्र उसकी आज्ञानुसार सब काम करवा दिया। इतना सब हो जाने पर मृगावती ने चतुराई के साथ नगर के सत्र दरवाजों को वन्द करवा दिये। और किले पर अपनी सेना के बहादुर सुभटो को चुन कर चढ़ा दिये । अव तो चण्डप्रद्योत राजा शाखा भ्रष्ट बन्दर की तरह नगरी को घेर कर वैठ गया। वह हत बुद्धि हो मृगावती की बुद्धि पर आश्चर्य करने लगा।
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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