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________________ भगवान महावीर २०४ विरक्त हो धनजय राजा ने सत्र राज्य भार इसे दे दीक्षा ग्रहण कर ली। राज्य सिंहासन पर बैठने के पश्चात् इसने अपने पराक्रम से छहो खण्डों को विजय किया। और चक्रवर्ती उपाधि ग्रहण की। तदनन्तर वह अत्यन्त न्याय-पूर्वक पृथ्वी का पालन करने लगा। एक समय मूकानगरी के उद्यान में "पोहिल" नामक प्राचार्य पधारे, उनसे धर्म का स्वरूप समझ कर इसने अपने पुत्र को सिंहासन पर विठा दीक्षा ग्रहण क रली। बहुत समय तक तपस्या करके अन्त में मृत्यु पा महाशुभ वर्ग में यह "सर्वार्थ" नामक विमान पर देवता हुआ । महाशुक्र देवलोक से च्यव कर वह भरतखण्ड के अन्तर्गत 'छत्रा' नामक नगरी में जितशत्रु राजा की भद्रा नामक खी के गर्भ से नन्दन नामक पुत्र हुआ। उसके युवा होने पर जित-शत्रु ने राज्य का भार उसे दे दीक्षा ग्रहण की । बहुत समय पश्चात् इसने भी ससार से विरक्त होकर पोट्टिलाचार्य के पास दीक्षा प्रहण कर ली । अत्यन्त कठिन तपस्या करने के पश्चात् इसने इसी भव में तीर्थकर नामक नामकर्म का उपार्जन किया । पश्चात् साठ दिवस तक अनशन वृत ग्रहण कर वह दशम स्वर्ग में पुष्योचर नामक विस्तृत विमान की उपपाद नामक शैय्या में देवता हुआ। एक अन्तर्मुहूर्त में वह मूहद्धिक देव हो गया । पश्चात् अपने ऊपर रहे हुए दृष्य वस्त्र को दूर कर शैय्या पर वैठ कर उसने सब सामग्रियां देखी । उन सामग्रियो को देख कर वह अत्यन्त विस्मित हुआ। पर अवधि ज्ञान के बल से यह सब धर्म का प्रभाव जान वह शान्त हो गया। इसके पश्चात् उसके सेवक सब
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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