SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९७ भगवान् महावीर की बिना कुछ आलोचना किये हुए ही अनशन के द्वारा उसने देह त्याग की और ब्रह्मदेव लोक में देवता हुआ। . ब्रह्मदेव लोक से च्यव कर मरीचि का जीव "कौलाक" नामक ग्राम में कौशिक नामक ब्राह्मण हुआ । विषय में अत्यन्त आसक्त, द्रव्योपार्जन मे तत्पर और हिंसा करने में अत्यन्त क्रूर एस ब्राह्मण ने बहुत काल निर्गमन किया। और अन्त में विदएडी से मृत्यु पाकर कई भवों में भ्रमण करता हुआ वद 'स्थूणां' नामक स्थान में "मित्र" नामक ब्राह्मण हुआ । वहां पर भी त्रिदण्डी से मृत्यु पाकर वह सौधर्म देवलोक में मध्य स्थिति चाला देव हुआ। वहां से च्यव कर "अग्न्युद्योत" नामक ब्राह्मण हुआ । इस जन्म में भी वह पूर्व की तरह "त्रिदण्डी" हुआ। उम योनि से मृत्यु पाकर वह इशान स्वर्ग मे देवता हुआ । वहां से च्यव कर मन्दिर नामक सन्निवेश में "अग्निभूति" नामक ब्राह्मण हुआ । उस भव में भी "त्रिदण्डी" ग्रहण कर बहुत सी आयु का उपभोग किया और अन्त मे मर कर सनत्कुमार देवलोक में मध्यम आयुवाला देव हुआ। वहां से च्यव कर श्वेताम्बी नगरी में भारद्वाज नामक विप्र हुआ । उस भव में त्रिदण्डी होकर बहुत आयु भोगने के पश्चात् मृत्यु पाकर माहेन्द्र कल्प में मध्यम आयुवाला देव हुआ। वहां से च्यव कर राजगृही में वह "स्थावर" नामक ब्राह्मण हुआ। वहां से मृत्यु पाकर वह ब्रह्मदेव लोक में मध्यम आयुवाला देव हुआ। । राजगृही नगरी में "विश्वनन्दी" नामक राजा राज्य करता था। उसकी “प्रियङ्ग" नामक स्त्री से "विशाखनन्दी" नामक एक पुत्र हुआ । उस राजा के "विशाख भूति" नामक एक भाई भी
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy