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________________ भगवान महावीर १७८ - सियों की पूर्ण योग्यता को मानना। उनके लिए गुरु-पद का आध्यात्मिक मार्ग खोल देना। ३-लोक भाषा में तत्त्वज्ञान और आचार का उपदेश करके केवल विद्वद्गम्य संस्कृत भाषा का मोह घटाना और योग्य अधिकारी के लिए ज्ञान प्राप्ति में भाषा का अन्तराय दूर करना । ४-ऐहिक और पारलौकिक सुख के लिये होने वाले यज्ञ मादि कर्मकाण्डों की अपेक्षा संयम तथा तपस्या के स्वावलम्बी तथा पुरुषार्थ प्रधान मार्ग की महत्ता स्थापित करना एवं अहिसा धर्म में प्रीति उत्पन्न करना। ५-त्याग और तपस्या के नाम रूप शिथिलाचार के स्थान पर सचे त्याग और सच्ची तपस्या की प्रतिष्ठा करके भोग की जगह योग के महत्व का वायुमण्डल चारो ओर उत्पन्न करना। उपरोक बातें तो उनके सर्ग-साधारण उपदेश में सम्मिलित थीं। तत्वज्ञान सम्बन्धी बातों में महावीर "अनेकान्त" और "सप्त मंगी स्याद्वाद" नामक प्रसिद्ध फिलासफी के जन्म दाता थे। इसका विवेचन किसी अगले खण्ड में किया जायगा। भगवान् महावीर के अनुयायियों और शिष्यों में सभी जाति के लोगों का उल्लेख मिलता है। इन्द्रभूति वगैरह उनके ग्यारह गणधर प्रामण कुलोत्पन्न थे। उदायी, मेघकुमार, आदि क्षत्रिय भी भगवान महावीर के शिष्य हुए थे। शालिभद्र इत्यादि वैश्य और मेताराज तथा हरिकेशी जैसे अति शूद्र भी भगवान को दी हुई पवित्र दोक्षा का पालन कर उच्च पद को प्राप्त हुए थे। साधियो में चन्दनवाला क्षत्रिय पुत्री थी। देवानन्दा ब्राह्मणो थी। गृहस्थ अनुयायियों में उनके मामा वैशालीपति चेटक,
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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