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________________ भगवान् महावीर १७६ सकता है। इसलिये उन्होंने केवल ऐसे ही उपाय किये जिससे - मनुष्य जाति को सत्य की ओर रुचि हो, लोगों के अन्त.करण में सत्य की स्थाई छाप बैठ जाय । वे परिणामदर्शी थे । वे जानते थे कि केवल अधिक संख्या में समाज को बढ़ाने से कुछ लाभ नहीं । कुछ समय तक तो वह दुनिया के पर्दे पर चलता रहता है, पर ज्योंही उसमें कुछ विशृंखलता उत्पन्न हुई कि, त्योंही छिन्न भिन्न हो जाता है । यहाँ तक कि उसका कुछ चिन्ह तक शेष नहीं रह जाता, लोक का कल्याण और अपने समाज की संख्या बढ़ाना ये दोनों कार्य्यं बिल्कुल जुदे जुदे है । समाज का सङ्गठन करना अथवा उसकी संख्या बढ़ाना यह तो मनुष्य की व्यवस्थापक शक्ति पर निर्भर है। पर लोक कल्याण के लिए विशुद्ध प्रेम, निस्वार्थ भावना, और एक प्रकार की लौकिक शक्ति की आवश्यकता है । अनुयायियों की संख्या बढ़ाना यह महावीर का एक गौण लक्ष्य था, उनका प्रधान लक्ष्य तो लोक कल्याण ही था । उन्होंने हमेशा कपने सुखद - सिद्धान्तों को जनता के हृदय में गहरे पेठा देने का प्रयत्न किया । उनके अनुयायी "बुद्ध" और और "गौशाला" की अपेक्षा कम थे । पर जितने भी थे, पक्के थे। उनकी रग रग में महावीर का उपदेश व्याप्त हो गया था, और यही कारण है कि केवल संख्या के बल में श्रद्धा रखने - वाले " गौशाला" का एक भी अनुयायी आज भारतवर्ष के किसी भी कोने में नहीं मिलता। उसकी फिलासफी के खण्डहर भी कहीं देखने को नहीं मिलते। इसी प्रकार अशोक के समय में सारे भारतवर्ष पर अपना बौद्धधर्म - जिसने अधिकार कर
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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