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-भगवान् महावीर
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चड़े बड़े तपस्वियों की तपस्या स्खलित हो जाती है । शङ्कर सरीखे योगीराज और विश्वामित्र के समान तपस्वी भी इसके फेर में पड़ कर स्कलित हो गये थे । मनुष्य प्रकृति का यह विन्दु चहुत ही कमजोर रहता है इसी कारण हिन्दू धर्म शास्त्रों मे काम को सर्वविजयी कहा है । और इसी कारण भगवान के सच्चे भक्त दुखमय जीवन को ही अधिक पसन्द करते हैं। तपस्या मे प्रविष्ट होने वाला हिन्दू सबसे पहले ईश्वर से यही प्रार्थना करता है कि "हे प्रभु | कष्ट दायक उपसर्गों में मैं अपना स्वत्व प्रदर्शित करने में समर्थ हूँ, पर अनुकूल और वैभव युक्त स्थिति की परीक्षा मे शायद मै असमर्थ हो जाऊँ, इस कारण मुझे ऐसी 'परिस्थिति से हमेशा बचाये रखना ।"
" सङ्गम" इस निर्बलता के स्वरूप को भली प्रकार जानता था और इसी कारण उसने सब ओर से असफल होकर इस कठिन परीक्षा में भगवान् महावीर को डाला। उसने अपनी दैवी शक्ति से अनेक प्रकार के फल फूलों और कामोत्तेजक द्रव्यों से युक्त वसन्त ऋतु का आविर्भाव किया और उसके साथ कई ललितललनाओ की उत्पत्ति कर उसने कामसैन्य की पूर्ति की ।
अपने अनुपम सौन्दर्य की राशि से विश्व को विमोहित करने वाली अनेक सुंदर सलोनी रमणियां महावीर के आस पास 'आकर रास रचने लगी। नाना प्रकार के हावभाव, कटाक्ष और मोहक अङ्ग विशेष से वे अपनी केलि-कामना प्रकट करने लगीं । कई प्रकार के बहानों से वे अपने शरीर पर के वस्त्रों को ढीले करने लगीं, और बँधे हुए केशपाश को ऊँचे हाथ करके विखरने लगी। कुछ लावण्यवती वालिकाओं ने कामदेव के विजयी पुष्प