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________________ १३३ भगवान महावीर में दो वर्ष और अधिक रहना उन्होंने स्वीकार किया। अन्त मे तीस वर्ष की अवस्था होने पर एक दिन दर्शको को हर्प-ध्वनि के बीच सांसारिक मुखों को लात मार कर परमसत्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने दीक्षा ग्रहण कर लो। राजकुमार महावीर सन्यासो हो गये । सत्र राज भोगों को, ऊचे ऊचे विलास मन्दिरों को,सुन्दरी यशोदा को और सारी प्रजा के मोह को छोड कर उन्होंने जंगल की राह ले ली। वह कौनना वडा सुन या-जिलको प्राप्त करने के लिए महावीरने सन्यास की इस कठिन नपस्या को स्वीकार किया। वह सुख सत्य का वास्तविक सौन्दर्य था । जिसको प्रामा करने के लिए महावीर ने __• इतनी बडी बड़ी विभूतियों को कुछ भी न समझा। दीक्षा के समय से लेकर कैवल्य प्राप्त तक अर्थात् लगभग बारह वर्ष तक भगवान महावीर ने मौन स्वीकार किया था। उनके चरित्र का यह अरा अत्यन्त बाधक और अमूल्य शिक्षाश्री मे युक्त है । बारह वर्ष तक उन्होंने किसी को किसीखास प्रकार का उपदेश न दिया। महावीर के पास उम समय कैवल्य को छोड़ कर शेष चार जान विद्यमान थे । इन्हीं ज्ञानो के सहारे यदि वे चाहत तो लाखो भटकते हुए प्राणियों को मार्ग पर लगा मकते थे। पर ऐसा न करते हुए सर्व प्रथम उन्होने अपना निजी हितसाधन के निमित्त मौन धारण करना ही उचित समझा। महावीर स्वामी को स्वीकार की हुई इस बात के अन्तर्गत बड़ा रहस्य छिपा हुआ मालूम होताहै,। श्रात्मा जितने ही अंशों में पूर्णता को प्राप्त कर लेती है जितने ही अंशों में वह परमपद के समीप पहुँच जाती है उत्तने
SR No.010171
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherMahavir Granth Prakashan Bhanpura
Publication Year
Total Pages435
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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