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भगवान् महावीर लोग उस माड़े के नीचे आ गये। बडे बड़े राजा भी आये
और छोटे छोटे रंक भी, अमीर भी आये और गरीव भी, सज्जन भी आये और दुष्ट भी । मतलब यह कि बौद्धधर्म सर्व व्यापी हो गया।
पर जैन प्राविकों की स्थिति इनसे बिल्कुल भिन्न थी। बौद्धानुयायियों में बिल्कुल विपरीत वे अपने संघ के एक खास अग में गिने जाते थे और अपने मुनिआर्जिकाओं के साथ वे अपना गादा मन्वन्ध समझते थे।
डास्टर हार्नल इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहते है कि:
"इम विषय में चौद्ध लोगों ने हिमालय पहाड़ के समान भारी भूल की है । इमी भयङ्कर भूल के कारण यह विशाल धर्म अपनी जन्मभूमि पर में ही जड़ मूल मे नष्ट हो गया है । ईमा की सातवीं शताब्दी में लोगों के धार्मिकवलन में फेर फार होने से हुएनसग के समय में घौद्ध-धर्म का पतन आरम्भ हुआ। उसके पश्चात नौवीं शताब्दी में शंकराचार्य की भयङ्कर चोट में पछाड़ ग्वाकर वह और भी धराशायी हो गया। आखिर जब बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में भारतवर्ष पर मुसलमानों का श्राक्रमण हुश्रा । तब वारानाथ और मिन्हाजुद्दीन के इतिहास में लिम्बे अनुसार थोड़े बहुत शेप रहे हुए वौद्ध-विहारों और चैत्यों को और भी सख्त आघात पहुँचा। जिससे चौद्धधर्म और भी छिन्न भिन्न होते होने अन्त में नष्ट हो गया। प्रारम्भ मे ही उसने अपने उपासकों का भिक्षु-संघ के साथ में कोई गादा सम्बन्ध न रक्खा था । और पीछे से भी उसके आचार्यों को यह करने की न सूझी। इस भूल के कारण