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धर्म और नीति (तप) ७९
२५६ आत्मा को शरीर से पृथक् जानकर भोगलिप्त शरीर को तपस्या के द्वारा वुन डालो।
२६० इच्छा निरोध तप से मोक्ष की प्राप्त होता है।
२६१ तप की विशेषता तो प्रत्यक्ष दिखलाई देती है किन्तु जाति की तो कोई विशेपता नजर नही आती।
२६२
तप ज्योति अर्थात् अग्नि है, जीव ज्योति स्थान है, मन वचन काया के योग आहुति देने की कडछी है, शरीर अग्नि प्रज्वलित करने का साधन है कर्म जलाए जाने वाला इधन है, सयम योग शाति पाठ है मैं इस प्रकार का यन करता हूँ जिसे ऋषियो ने श्रेष्ठ बतलाया है।
तप के द्वारा अपने को कृश करो। तन मन को हल्का करो अपने को जीर्ण करो, भोग वृत्ति को जर्जर करो।
२६४ सुव्रती साधक कम खाए, कम पीए और कम बोले ।
२६५ ब्रह्मचारी को कभी भी अधिक मात्रा मे भोजन नही करना चाहिए।