________________
सम्पादक की कलम से
सूक्तियां स्वयमेव साहित्याकाश के लिए उज्ज्वल नक्षत्र के समान है। इनकी निर्मल ग्राभा, देशकाल की सङ्कीर्ण सीमा को लाघ कर एक रस रहती है ।
जीवन के विविध अनुभवो ने इनको अजरता और अमरता दे रखी है। इन सूक्तियो मे मिश्री का माधुर्य और अंगूर का सारस्य जैसा स्वाद परिलक्षित होता है। __ भगवान महावीर युग पुरुष के रूप मे प्रतिष्ठित थे। उनके समय-समय के प्रवचन अतिमर्मस्पृक होते थे। उनके आगम-साहित्य के अनेक प्रवचन-रत्न हैं । जिनकी झलक सहृदय एवं धार्मिक पुरुष के हृदयादर्श पर द्विगुणित प्रभासम्पन्न हो जाती है ।
अतएव उन प्रवचन रत्नो के चकाचौध मे सूक्तियो का सङ्कलन प्रारम्भ हया और जैसा जमा, जमाता चला गया। यही वह दूसरे रूप मे एक सग्रह हो गया। संग्रह के जीवनदाता श्रद्धेय गुरुदेव राजस्थान केसरी पण्डितरत्न श्री पुष्कर मुनि जी एव समर्थ साहित्य स्रष्टा