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________________ अध्यात्म और दर्शन (ज्ञान) २०५ ६१७ जिस प्रकार अन्ध पुरुष प्रकाश होते हुये भी नेत्र न होने के कारण रुपादि कुछ भी नहीं देख पाता है इसी प्रकार प्रज्ञाहीन मनुष्य शास्त्र के समक्ष रहते हुये भी सत्य के दर्शन नहीं कर पाता। ज्ञान एव विद्याचरण से ही मोक्ष प्राप्त होता है। अज्ञानी मनुष्य पापानुष्ठान से कर्म का नाश नहीं कर पाते किन्तु ज्ञानी धीर पुरुष अकर्म से कर्म का क्षय कर देते हैं। ६२० कभी कभी अज्ञानी मनुष्यो मे से भी ज्ञान ज्योति जल उठती है और कभी कभी ज्ञानी हृदय पर भी अज्ञान छा जाता है। ६२१ ज्ञान का प्रकाश इस जन्म मे रहता हैं परभव मे रहता है और कभी दोनो जन्मो मे भी रहता है। ६२२ । पहले ज्ञान होना चाहिए फिर तदनुसार आचरण होना चाहिए। धागे में पिरोइ हुयी सुई गिर जाने पर भी गुम नही होती, उसी प्रकार ज्ञान रूप धागे से युक्त आत्मा ससार मे भटकता नही, विनाश को प्राप्त नहीं होता। ६२४ ज्ञान से जीव, जीवादिक तत्वो को जानता है।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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