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________________ अध्यात्म और दर्शन (वैराग्य) १८६ ५७१ यह शरीर पानी के बुलबुले के समान क्षण भंगुर है, पहले या पीछे एक दिन इसे छोडना है अतः इसके प्रति मेरी तनिक भी आसक्ति नही है। ५७२ मनुष्य का जीवन और रूप सौन्दर्य बिजली की चमकवत् चचल है। राजन् आश्चर्य है, फिर भी तुम इस पर मुग्ध हो रहे हो परलोक की ओर क्यो नही निहारते ? ५७३ जो मनुष्य दूसरे का तिरस्कार करता है वह चिर काल तक संसार में परिभ्रमण करता है । पर निन्दा पाप का कारण है यह समझ कर साधक अहभाव का पोपण नहीं करते। ५७४ तुम जिनसे सुख की आशा रखते हो वस्तुतः वे सुख के कारण हैं नही मोह से घिरे हुए लोग इस बात को नही समझते । ५७५ पीला पत्ता जमीन पर पडता हुआ अपने साथी हरे पत्तो से कहता है, आज जैसे तुम हो एक दिन हम भी ऐसे ही थे और प्राज जैसे हम हैं एक दिन तुम्हे भी ऐसा ही होना है।
SR No.010170
Book TitleBhagavana Mahavira ki Suktiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1973
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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